Tuesday, December 9, 2014

जाने कब तिलस्म टूटेगा ?

 जाने कब तिलस्म टूटेगा  ?
कब सपनों का महल बनेगा ?
कब मन की पीड़ा टूटेगी ?
मौन न जाने कब बोलेगा ?

इन्तजार में बीती घड़ियाँ ,
ढर -ढर , ढरके मोती लड़ियाँ।
धूप छिपी घर के पिछवाड़े ,
दौड़ के आयेंगे अँधियारे।
मन भी दूर चला जायेगा  ,
चल कर दूर भटक जायेगा .
जाने कब तिलस्म टूटेगा ?
कब सपनों का महल बनेगा ?

मौन हुई हैं सभी दिशायें ,
धूमिल सी हैं सब आशायें।
बस केवल झींगूर  स्वर है ,
मन के अन्दर ही खंजर है।
सन्नाटा भी नहीं बोलता ,
कैसे सन्नाटा टूटेगा ?
जाने कब तिलस्म टूटेगा ?
कब सपनों का महल बनेगा ?

अरे मनुज ! क्या सोच रहा है ?
प्रात क्षितिज रवि डोल  रहा है।
अँधियारा कब तक ठहरा है ,
यह भी दूर चला जायेगा।
मन की गाँठें खोल के रखना ,
देखो सूरज आ जायेगा।
शायद , तब तिलस्म टूटेगा ,
तब सपनों का महल बनेगा।


No comments:

Post a Comment