दरिया है तू , मैं नदी का किनारा ,
तू मौजों की धारा , मैं तेरा सहारा।
बाहों में मेरी सिमट कर बहो तुम ,
अतल,दिल की गहराइयों में बसो तुम।
धवल चाँदनी भी तुम्हे दुलराये ,
अँधेरे तुम्हें थपकियाँ दे सुलाये।
लहरों के सपने तुम्हें गुदगुदाए ,
हवायें तुझे प्यारी लोरी सुनायें।
हुई जो सुबह ,जागी सूरज की किरणें ,
बड़े भाव से तुम लगी फिर से बहने।
पतवार ने छू लिया गोरे तन को ,
बल खा के , हँस कर लगी तुम मचलने ।
दरिया है तू ,मैं नदी का किनारा ,
तू मौजों की धारा ,मैं तेरा सहारा।
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