एक चिड़ी ने कहा चिड़े से ,
दूर देश हम कहाँ जायेंगे ,
इस जीवन की भाग- दौड़ से ,
अच्छा है हम मिट जायेंगे।
सारे जंगल काट दिये हैं ,
नीड़-बसेरे कहाँ बनेंगे ,
कंकड़ - पत्थर के महल खड़े हैं ,
बोलो बच्चे कहाँ जनेंगे ।
शीत -ताप , आँधी -झक्खर से ,
हम सब कैसे यहाँ बचेंगे ,
मँहगाई में लोग पिस रहे ,
दाने हमको कहाँ मिलेंगे।
ताल-तलैये सूख जायेंगे ,
नदियों में जल नहीं रहेँगे ,
ख़ुश्क हलक की प्यास बुझाने ,
नीर कहाँ से हमें मिलेंगे ।
यहाँ तो गिद्धों की बस्ती है ,
निर्बल का कुछ काम नहीं है ,
नोच-नोच कर जो खायेंगे ,
वही यहाँ के सिद्ध बनेंगे।
----- ( प्रकाशित )
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