अहो ! आज फिर दिख गई ,
गोरैया मेरी मुँडेर पर ,
कुछ कोमल पत्ते दिखे ,
कटे आम के पेड़ पर।
मेरे आँगन पेड़ आम का ,
भारी और गरबीला था ,
फल भी उसमें बहुत थे लगते ,
हर फल बहुत रसीला था।
तोता , मैना और गिलहरी ,
सबका यहीं बसेरा था ,
नए-नये नन्हे पंछी का ,
इसमें स्थायी डेरा था।
रोज सबेरे सब मिलते थे ,
मिलकर खुशी मनाते थे ,
अपने मीठे कलरव से ,
आँगन में खुशियाँ भरते थे।
नित दिन ही , पत्नि भी मेरी ,
उनको दाने देती थीं ,
दाने चुगते देख उन्हें , वह ,
मन ही मन खुश होती थीं।
एक दिवस ऐसा भी आया ,
पड़े काटने आम के पेड़ ,
चुपके-चुपके मैं भी रोया ,
देख गिरे अण्डों के ढेर।
हुई गिलहरी गुमसुम-गुमसुम ,
पंछी सब भी हुए हताश ,
देख उजड़ते उनके घर को ,
मैं भी संग-संग हुआ उदास।
नहीं दिखी फिर कोई गिलहरी ,
न पंछी ही कोई दिखे ,
सूरज ने अपनी गरमी के ,
आँगन में इतिहास लिखे।
घर के छत ,छप्पर और छाजन ,
सब के सब ही लाल हुए ,
राहत थी जब पेड़ यहाँ थे ,
गर्मी से बेहाल हुए।
यही सोचते रहे थे हम सब ,
कोपल इसमें नये खिलें ,
फिर से इसमें फल लग जायें ,
पंछी फिर से आन बसें।
आज दिखे जब कोमल पत्ते ,
मन में मेरे हुआ हुलास ,
फिर आयेंगे तोता, मैना ,
संग गिलहरी की है आश ।
आज दिखी जब मुझे गिलहरी ,
मन में यह विश्वास जगा ,
पेड़ हमें देते हैं जीवन ,
हर आँगन इक पेड़ लगा।
------- ( प्रकाशित )
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद! मुझे ख़ुशी है कि आपको रचना पसंद आयी.
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