आयल बसंत बहार
सखी री , मोरा पिया नहीं आयल ।
सावन मास वाणिज को गयल पिया ,
नहीं लीनी सुधि भी हमार
सखी री,मोरा पिया नहीं आयल ।
कही के गयल पिया अबहुँ लौं आवति ,
बीत गयल दिन-मास
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
नहीं कोउ पतिया , न कोउ खबरिया ,
कासे पठावउँ सन्देश
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
डारि-डारि बिहुँसहिं कलियाँ निगोरी ,
भँवरा करत गुँजार
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
महकै जो बौरना तो हिया बौराबै ,
महुआ पकहिं वन माहिं
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
चहुँ ओर कूजत कोयलिया कारी ,
उठत करेजवा में पीड़
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
साँझ भये जोहूँ बाट - डगरिया ,
जोबना भयल मोर उदास
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
आयल बसंत बहार ,
सखी री मोरा पिया नहीं आयल ।
No comments:
Post a Comment