नहीं जँचेगी बात तुम्हें ,पर सच्ची -सच्ची कहता हूँ ,
मैं झूठ नहीं कुछ कहता हूँ ,मैं आँखों देखी कहता हूँ ।
बातों की खेती होती है ,लाशों की खेती होती है ,
जिसे काटते - बोते हैं कुछ खाश किस्म के लोग यहाँ ,
हैं लोग बड़े ही भले यहाँ।
देख खेत में लाशों को ,गिद्धोँ के बिचरण बढ़ जाते ,
हैं इनमें से कुछ बड़े -बड़े , कुछ छोटे और मँझोले हैं ,
पर पर सब के सब ही भोले हैं।
सुन कर अटपटा लगा होगा , मुझ पर विश्वास घटा होगा ,
पर बात सुनाता खरी - खरी , है सोलह आने बात सही।
मनुज यहाँ बिक जाता है , कफ़न यहाँ बिक जाता है ,
खड़े - खड़े ही लोगों का ईमान यहाँ बिक जाता है।
गोदामों में पड़े - पड़े ही ,अन्न यहाँ सड़ जाता है ,
किन्तु ,बचपन रोता - रोता ,भूखा ही मर जाता है।
मनरेगा में मजदूरों का , श्रम यहाँ बिक जाता है ,
मिड -डे मील का खाना भी भी , प्रबंधक ही खा जाता है।
कहने को तो स्कूलों में खाना पोषक ही मिलता ,
उनसे भी जाकर पूछो , जिनका सड़ांध से नाता है।
वो अक्षर ज्ञान को क्या बांचे , है जिनका पेट नहीं भरता ,
पर नेताओं के दावत में , मुर्गा हलाल हो जाता है।
( 13- 7 - 2013 की रचना )
मैं झूठ नहीं कुछ कहता हूँ ,मैं आँखों देखी कहता हूँ ।
बातों की खेती होती है ,लाशों की खेती होती है ,
जिसे काटते - बोते हैं कुछ खाश किस्म के लोग यहाँ ,
हैं लोग बड़े ही भले यहाँ।
देख खेत में लाशों को ,गिद्धोँ के बिचरण बढ़ जाते ,
हैं इनमें से कुछ बड़े -बड़े , कुछ छोटे और मँझोले हैं ,
पर पर सब के सब ही भोले हैं।
सुन कर अटपटा लगा होगा , मुझ पर विश्वास घटा होगा ,
पर बात सुनाता खरी - खरी , है सोलह आने बात सही।
मनुज यहाँ बिक जाता है , कफ़न यहाँ बिक जाता है ,
खड़े - खड़े ही लोगों का ईमान यहाँ बिक जाता है।
गोदामों में पड़े - पड़े ही ,अन्न यहाँ सड़ जाता है ,
किन्तु ,बचपन रोता - रोता ,भूखा ही मर जाता है।
मनरेगा में मजदूरों का , श्रम यहाँ बिक जाता है ,
मिड -डे मील का खाना भी भी , प्रबंधक ही खा जाता है।
कहने को तो स्कूलों में खाना पोषक ही मिलता ,
उनसे भी जाकर पूछो , जिनका सड़ांध से नाता है।
वो अक्षर ज्ञान को क्या बांचे , है जिनका पेट नहीं भरता ,
पर नेताओं के दावत में , मुर्गा हलाल हो जाता है।
( 13- 7 - 2013 की रचना )
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