काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Thursday, January 23, 2014
कोरा - कोरा दिल है मेरा
कोरा - कोरा दिल है मेरा ,कोरा-कोरा गीत ,
ढूंढ रहा है यह दिल मेरा ,मन का कोई मीत।
किसे बताऊँ, किसे सुनाऊँ, दिल की अपनी बात ,
दिन ढल जाता, शाम है आती, आ जाती फिर रात।
जब सागर के खुले वक्ष, छू लेता पूनो चाँद ,
मचल-मचल सागर की लहरें, चलीं चूमने चाँद ।
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