बहुत दिनों पर चिट्ठी तेरी आन मिली है ,
पूछ रहे हो हाल हमारा क्या बतलाऊँ ,
जैसे - तैसे कट जता है जीवन मेरा ,
अपनी पीड़ा इस ख़त में कैसे जतलाऊँ।
जीवन कितना कठिन हो रहा है पहाड़ पर ,
पीने के पानी को मीलों चलना पड़ता ,
नहीं सड़क है यहाँ कोई कच्ची या पक्की ,
ऊबड -खाबड़ पथरीले पथ चढ़ना पड़ता ।
मिलती नहीं है बाज़ारों में हरी सब्जियाँ ,
सब ही सब चट कर गईं सुना है बड़ी इल्लियाँ ,
नमक,दाल ,चावल,आटा का हाल बुरा है ,
इससे तो सस्ती बोतल की बन्द सुरा है।
सुना,कि पिट्रोल -डीजल का कुछ दाम बढ़ा है ,
फिर भी नहीं मँहगाई का बोझ बढ़ा है ,
बढ़ा- चढ़ा है,तो केवल बस प्याज चढ़ा है
संग टमाटर भी थोड़ा सा साथ बढ़ा है।
हैं बिजली के तार सजे खम्भों पर लेकिन ,
नहीं बल्ब है इन खम्भों पर कभी लटकता ,
नहीं सूझता यहाँ हाथ को हाथ रात में ,
रह-रह कर अम्मा-बाबू का दिल घबड़ाता।
नहीं डाक्टर यहाँ कभी कोई मिलते हैं ,
ना ही मिलती दवा यहाँ की दूकानों पर ,
यदि तम्हें फुर्सत मिल जाए अपने काम से ,
कुछ दवाईयाँ भी तुम अपने साथ ले आना।
जलती नहीं है गीली लकड़ी भी चूल्हे में ,
खाँस -खाँस कर मेरा दम घुटने लगता है,
नहीं मदद सरकारी कोई मिलती है ,
मौसम का भी कोप हमें सहना पड़ता है।
एक काम है और तम्हें कैसे बतलाऊँ ,
संभव हो तो तेल मिट्टी का भी ले आना
चाँद तोड़ कर लाना ,चाहे न लाना ,
एक सिलेंडर साथअपने तू ले आना।
---- ( अभ्यर्थना शीर्षक से प्रकाशित )
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