अबला कह करके नारी का , मत करना अपमान कभी ,
बिन नारी के जग में नर की , है कोई भी पहचान नहीं ।
नारी बिन तो नर आधा है , नारी ने नर को साधा है ,
त्याग , तपस्या और प्यार की , वह तो मोहन की राधा है ।
गंगा सी निर्मल है नारी , और वज्र की भाँती कठोर ,
दिल में ममता की सरिता है , प्रीति बाँटती है चहुँओर ।
चाहे वह मजदूरिन हो, या, हो तोड़ती पत्थर नारी ,
ममता की मूरत है , पर है , नहीं किसी से कमतर नारी।
चीड़ हवा के सीने को ,नभ में उड़ान भरती है नारी ,
साहस , शौर्य , पराक्रम की भी , देवी होती है यह नारी।
दुश्मन भी गर आन पड़े , बन जाती तलवार है नारी ,
लाँघ पहाड़ों की चोटी , छू लेती आकाश है नारी।
नर का सृजन वही करती है, है पयपान कराती नारी ,
पाल पोस कर बड़ा बना कर , साहस ऊर्जा भरती नारी ।
देख- देख निज सृजन सदा ही , मुग्ध हुआ करती है नारी ,
जीवन में इक नेह छोड़ कर , नहीं माँगती कुछ भी नारी ।
छूता है अभिमान न उसको , न्योछावर जीवन कर जाती ,
देश प्रेम , परिवार प्रेम में , सब कुछ त्याग अमर हो जाती ।
अति कोमल है , भावप्रवण है , करुणा का सागर है नारी ,
जब रक्षा का प्रश्न खड़ा हो , बन जाती असि धार है नारी ।
देवी भी है , दुर्गा भी है , है रणचंडी भी यह नारी ,
सरस्वती सी वाणी इसकी , प्रकृति का सौंदर्य है नारी ।
नहीं सबल नारी के जैसा , जग में कोई सबल हुआ है ,
दानशील नारी के जैसा , जग में कोई नहीं हुआ है ।
नारी ने निज कोख से सदा , वीरों को ही जन्म दिया है ,
हँसते - हँसते देश के लिये , सुत सरहद पर भेज दिया है ।
न्योछावर कर पूत देश हित , नहीं कभी भी विचलित होती ,
बलि वेदी पर भेज तनय को , नहीं वीर माता है रोती ।
निज अदम्य साहस के , इतिहास अमर रचती है नारी ,
कभी टेरेसा , निवेदिता व कभी लक्ष्मी बन जाती नारी ।
कहीं कोकिला बन जाती है , कहीं लता बन झूमे नारी ,
कहीं " कल्पना " की पाँखो पर , छू लेती आकाश है नारी ।
होती नहीं अगर नारी तो , प्रकृति का श्रृंगार न होता ,
होता नहीं असीम गगन यह , वैभवपूर्ण संसार न होता ।
झील और नदियाँ ना होतीं , ना यह पर्वतराज ही होता ,
हिम शिखरों पर रजत - पुंज से , हिम का यह अंबार न होता ।
होती नहीं अगर नारी तो , पुष्पों में सौरभ न होता ,
नंदन कानन कहीं न होता , शीतल मंद समीर न होता ।
नारी अगर नहीं होती तो , धर्म - अधर्म का मर्म न होता ,
नहीं जन्म का , नहीं मरण का ,जीवन कोई कर्म न होता ।
नारी भोग्या नहीं अरे ! यह , पूज्या है जग - जननी नारी ,
दिव्य अप्सरा देव लोक की , मनोहारिणी है यह नारी ।
नारी है तो घर देवालय , घर की लक्ष्मी होती नारी ,
केवल आदर , प्यार और , सम्मान चाहती है हर नारी ।
पत्नी बन अपने प्रियतम पर , संचित प्यार लुटाती नारी ,
आत्मशक्ति से हो परिपूरित , है हर संबंध निभाती नारी ।
नानी , दादी , माता , बहना , बन कर स्नेह लुटाती नारी ,
मौसी, मामी , ताई , चाची , बन कर गले लगाती नारी ।
सच है यह इस जग में नर का , भाग्य , नारी ही लिखती है ,
नहीं चाँदनी बिना चाँद की , कोई , काया ही होती है ।
नारी ही वह शक्ति - पुंज है , नर में साहस भर देती है ,
चाहे तो दे भेज नरक , या , चन्दन सा महका देती है ।
नारी अगर नहीं होती तो , महापुरुष कोई ना होता ,
होता ना कोई वीर यहाँ , न , इतिहास वीरों का होता ।
अमर त्याग हाड़ा रानी का , चूड़ावत का नाम न होता ,
ना होती ज्वाला जौहर की , राजस्थान सुधाम न होता ।
गर ना होती वह शकुन्तला , भारत वीर भरत ना होता ,
त्यागमयी वह माँ ना होती , चन्द्रगुप्त सम्राट ना होता ।
पन्ना धाई ना होती गर , ' राणा ' का यशगान न होता ,( उदय सिंह राणा )
जीजाबाई न होती गर , वीर शिवा का नाम न होता ।
यशोधरा का त्याग ना होता , तो सिद्धार्थ ' बुद्ध ' न होते ,
' उर्मि ' का जो त्याग ना होता , ' लक्ष्मण ' फिर ' लक्ष्मण ' ना होते ।
नहीं सुजाता खीर खिलाती , नहीं बुद्ध को सिद्धी मिलती ,
ना ही बिना आम्रपाली के , जग में नाम अमर हो पाते ।
विद्यावती नहीं होती तो , भगत सिंह फौलाद ना होता ,
ना होती जगरानी देवी , चन्द्रशेखर आज़ाद न होता ।
होती यदि मुमताज़ नहीं तो , शाहज़हाँ का ताज़ न होता ,
शरद चन्द्र इर्ष्या करता क्यों , ताज़महल विख्यात न होता ।
रत्ना जैसी नारि न होती , तुलसीदास अमर ना होते ,
ना तो मिलते राम ही उन्हें , ना ही वे रामायण लिखते ।
कौशल्या , कैकेई न होती , और सुमित्रा जैसी माता ,
राम लखन ना होते जग में , भाई , भरत समान न होता ।
जनक दुलारी सिया न होती , रावण अजर - अमर हो जाता ,
होती नहीं यशोदा यदि तो , कभी कंस का अंत न होता ।
न होती यदि देवकी माता , वंशीधर का जन्म ना होता ,
ना होती देवी - दुर्गा ही , कंसों का फिर अंत न होता ।
कुंती होती नहीं धरा पर , पार्थ-कर्ण का नाम ना होता ,
द्रुपद- पुत्रि का जन्म ना होता , कौरव का संहार ना होता ।
पुतलीबाई अगर न होती , मोहनदास प्रगट ना होते ,
कस्तूरबा नहीं होती तो , बापू फिर बापू ना होते ।
होती नहीं अगर सावित्री , सत्यवान फिर लौट न आता ,
नारी के तप-त्याग शक्ति का , इस जग में आभास न होता ।
ये तो सभी नारियां ही थीं , रत्नों को ही जन्म दिया है ,
क्यों करता अपमान नारि का , जिसने इतना मान दिया है ।
नारि अग्नि है , ज्वाला भी है , दीप - स्तम्भ भी है यह नारी ,
यह शीतल चन्द्र किरण सी है , जब जाग जाय है चिनगारी ।
मूरख मन तू मत कुरेद उन , ठंढी राख की ढेरों को ,
जल जाएगा सब कुछ तेरा , तू , दे न हवा अंगारों को ।
मत कर ह्त्या कन्या भ्रूण की , अपना भाग्य ना खोटा कर ,
फूल हैं ये , खिलने दे इनको , जीवन इनका तू नष्ट न कर ।
नर है नहीं , नराधम है , जो , नारी को सम्मान न देता ,
नारी का अपमान जो करता , किस्मत उसका साथ न देता ।
नारी गंगा सम निर्मल है , सब पापों को धो देती है ,
क्षण में वही उठा देती है , क्षण में वही गिरा देती है ।
त्याग , तपस्या , बलिदानों की , अमर कहानी है यह नारी ,
सकल विश्व की सृष्टी रूपा , पूजित होती है यह नारी ।
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