पहले तो हम ख़त लिखते थे ,
ख़त में अपना दिल रखते थे ,
हँसी - ख़ुशी - राजी की बातें ,
सब कुछ हम खुल कर लिखते थे ,
शिकवे और शिकायत को भी ,
प्यार के लफ़्ज़ों में लिखते थे ।
बहुत दिनों पर ख़त मिलता था ,
ख़त पाकर धड़कन बढ़ता था ,
फिर कोने में बैठ शान्ति से ,
ख़त के हरफ़ - हरफ़ पढ़ता था ,
जैसे - जैसे ख़त पढ़ता था ,
दिल भावुक होता जाता था ।
माँ का प्यार भरा होता था ,
बहनों का राखी होता था ,
भैया का मनुहार होता था ,
भाभी का दुलार होता था ,
बाबू जी के आशीषों से ,
पूरा ख़त भींगा होता था ।
घरवाली की चिठ्ठी आती ,
दो शब्दों में सब कह जाती ,
बच्चों की शैतानी लिखती ,
उनकी मधुर ठिठोली लिखती ,
कुछ अपनी परेशानी लिखती ,
कुछ घर की परेशानी लिखती ।
सालों - सालों बीत गये हैं ,
अब तो ख़त कोई ना लिखता ,
सुना तरक्की हुई देश की ,
घर - घर टेलेफोन लग गया ,
टेलेफोन लगा क्या घर में ,
ख़त का तो मजमून खो गया ।
ख़त छोड़ हम फोन पर बैठे ,
पहले कुछ बातें करते थे ,
कुछ अपने दिल की कहते थे ,
कुछ सब के मन की सुनते थे ,
बारी - बारी एक दूजे से ,
बातें खूब किया करते थे ।
हुई तरक्की बहुत देश की ,
चुपके से मोबाइल आया ,
इसने सब का मन बहलाया ,
हर हाथों में यह लहराया ,
उन्नति की इस चकाचोंध में ,
एस एम् एस ने है भरमाया ।
छूट गए सब रिश्ते - नाते ,
टूट गए वो प्यार के बंधन ,
नहीं कशिश रिश्तों में पाते ,
नहीं जुड़न रिश्तों में पाते ,
तल्ख़ हो गए वाणी सबके ,
अपनी डफली आप बजाते ।
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