उतर आओ घटा काली
जलद बादलों के साथ ,
खेतों में , इन मेड़ों पर
रिम - झिम बूंद बरसा दो ,
कृषक - मन को हरषा दो
सारी भू को सरसा दो ।
चली जाना , न रोकूँगा
मचलते ह्रदय को , मधुर ,
पावस गीत गाने दो ।
कृपण क्यों हो , लिए जलघट
बरस जाओ धरा पर तुम ,
विदा दूंगा तुम्हें , लेकिन
दिखा कर ज़ाम आँखों को ,
छुला कर मय को होंठों से
हटा लेना , कहाँ का
न्याय है बोलो ?
उतर , प्यासी हुई भू की
तुम प्यास हर लेना ,
झुलस जो गये हैं तरुवर
उन्हें तुम तृप्त कर देना ,
तपती हुई बहती हवा की
तपिश हर लेना ,
उतर आओ , उतर आओ ,
उतर आओ ।
( 26 - 6 - 66 की रचना )
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