बिन काँटों के मीत हमारे
जीवन में संगीत न होते ,
यहाँ शमां भी परवाने बिन
लगते हैं अति फीके - फीके ।
तट को चूम अगर लहरों के
जीवन प्यास बुझा ही जातीं ,
क्यों आकुल हो कर ये लहरें
बार - बार तट से टकरातीं ।
मन की ज्यों न सीमा होती
सागर के ज्यों तीर न होते ,
इसी तरह इस जग में सच है
मीत , प्रीति के रीति न होते ।
जीवन में संगीत न होते ,
यहाँ शमां भी परवाने बिन
लगते हैं अति फीके - फीके ।
तट को चूम अगर लहरों के
जीवन प्यास बुझा ही जातीं ,
क्यों आकुल हो कर ये लहरें
बार - बार तट से टकरातीं ।
मन की ज्यों न सीमा होती
सागर के ज्यों तीर न होते ,
इसी तरह इस जग में सच है
मीत , प्रीति के रीति न होते ।
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