काव्य मंजरी
विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
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Saturday, October 27, 2012
जिंदगी
जिंदगी ,
गम की परतों में लिपटी ,
यादों के घेरे में कैद ,
यों ,
गुजर जाती है ,
ज्यों ,
सपनों की छप - छू
तैरती नैया ,
ज्यों ,
ढुलक पड़ता है ,
कमल की कोमल ,
पंखुड़ियों पर ,
छलकता ,
वह चंचल जल - बूंद ।
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