गीत कुछ ऐसा लिखो जो , मन को देता हो झकझोर ,
साहस ऐसा दिखलाओ , थम जाये लहरों का शोर ।
झंझावातों , तूफानों से धीर नहीं घबड़ाते हैं ,
दुश्मन कितना भी शातिर हो वीर नहीं थर्राते हैं ।
देख सिंह के शावक को , मृग - झुण्ड सहम ही जाते हैं ,
हिम्मत के आगे दुश्मन के पाँव उखड़ ही जाते हैं ।
कापुरुषों की नहीं धरा यह , वीर भूमि कहलाती है ,
राम , कृष्ण , गौतम , नानक की यह धरती कहलाती है ।
नहीं दृगों में जिनके पानी , मनुज कभी न हो सकते ,
संबल जिनकी लोलुपसा है , रण को जीत नहीं सकते ।
भीरु और कायर ही छल से , हर प्रपंच रचा करते हैं ,
बन कर नाग आस्तीन का , छल से दंश दिया करते हैं ।
सत्य यही है मनुज वही जो , लड़े सत्य के लिए सदा ,
जीत उसी की जग में होती , संयम से जो रहा सदा ।
है धरा कृष्ण की जहाँ नाग के , सिर चढ़ कर कुचला करते हैं ,
हम शत्रु के नागफनों को , तत्क्षण काट दिया करते हैं ।
है भारत यह भरतवंश की , अपना भाग्य बना सकते हैं ,
खूंखार शेर के रदनों को हम , जबड़े खोल गिना करते हैं ।
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