मैं अलबेला निपट अकेला
बाट , बाट मैं घूमा कियौ ,
घाट , घाट का पानी पिऔ
कुछ ऊँचौ , कुछ नीचौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
प्यार ही ओढ़यौ प्यार बिछायौ ,
प्यार ही प्यार कियौ ,
मूढ मति मैं कछु नहीं जानौ ,
कौन सी जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
कोई कहै , मैं रहा जुलाहा ,
कोई कहै सन्यासी ,
पंडित कोई कहै मुझे ,
मैं जाय बसा जब काशी ,
जो शिवधाम कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
चाण्डाल गृह भोजन कियौ
नृप हरिशचंद्र सत्यवादी ,
मैं तो से ही पूछऊँ माधो ,
वे कौन सी जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
जूठे बेर चखै शबरी घर ,
वे भगवान् कहायौ ,
राम नाम की महिमा माधो ,
तुम्हहू तो है जानौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
मानुष बन रहना मैं चाहौं ,
मानुष तन है पायौ ,
नहीं जानत हूँ जात - पात ,
मैं मानुष जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
,
बाट , बाट मैं घूमा कियौ ,
घाट , घाट का पानी पिऔ
कुछ ऊँचौ , कुछ नीचौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
प्यार ही ओढ़यौ प्यार बिछायौ ,
प्यार ही प्यार कियौ ,
मूढ मति मैं कछु नहीं जानौ ,
कौन सी जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
कोई कहै , मैं रहा जुलाहा ,
कोई कहै सन्यासी ,
पंडित कोई कहै मुझे ,
मैं जाय बसा जब काशी ,
जो शिवधाम कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
चाण्डाल गृह भोजन कियौ
नृप हरिशचंद्र सत्यवादी ,
मैं तो से ही पूछऊँ माधो ,
वे कौन सी जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
जूठे बेर चखै शबरी घर ,
वे भगवान् कहायौ ,
राम नाम की महिमा माधो ,
तुम्हहू तो है जानौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
मानुष बन रहना मैं चाहौं ,
मानुष तन है पायौ ,
नहीं जानत हूँ जात - पात ,
मैं मानुष जात कहायौ ,
माधो मेरी जात न पूछौ ।
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