आज फिर शहर में हादसा है हो गया ,
बूढ़े बरगद पेड़ का मर्डर है हो गया ।
कल्ह तक जो बड़े शान से था इस जगह खड़ा ,
आज वही बेजान सा है भूमि पर पड़ा ।
यह बात बड़े जोर से फैली प्रदेश में ,
भेड़िये हैं घूम रहे इन्सां के वेश में ।
कौवा बना रिपोर्टर यह बाँच रहा है ,
हर दिशा में घूमता , वह नाच रहा है ।
है खैर नहीं पंछियों जाना नहीं शहर ,
हर सजीले पेड़ पर इन्सां का है कहर ।
पेड़ों को काट कर मंगल मना रहे ,
हर ओर कंक्रीट का जंगल बना रहे ।
हैं कितने अनजान , वो , जानते नहीं ,
पेड़ - पत्तियों के गुण , पहचानते नहीं ।
मूढ़ मति , रूक कर जरा पेड़ों की भी सुनो ,
क्या कह रहे हैं पेड़ , इस बात को गुनो ।
हम ही हैं दधिची , जो सब कुछ दान करते हैं ,
जीवित तो क्या कट कर भी कल्याण करते हैं ।
जो हम नहीं होंगे तुम भी नहीं होगे ,
अपनी ही संतति को जवाब क्या दोगे ।
गर्मियों में पेड़ भी श्रमदान करते हैं ,
ख़ुद झुलस कर राही को विश्रांति देते हैं ।
हम हैं तो है धरा , पर्वत और आसमां ,
वरना नहीं बचेगा किसी का यहाँ निशां ।
चेतना है चेत ले अब भी समय बहुत ,
समझो हमारी बात , इतना कहा बहुत ।
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