मैं झरोखा हूँ ,
जिससे झांकते हैं लोग ,
मेरे अन्दर का आदमी ,
जिसमें समाया है
पूरा रेल समाज ।
लोग मुझमें ही ढूंढते हैं
आस्था , सौम्यता ,
शीलता और विनम्रता ,
और
एक छवि बनाते हैं
सिर्फ मुझमें देखकर ।
"एक ही मछली ,
तालाब गंदा करती है "
यह कहावत चरितार्थ न हो
इस भारतीय रेल पर ,
इसलिये ,
आओ हम करें प्रतिकार
अपने अन्दर के दुर्गुणों का
और करें विस्तार
अपने हृदय के उद्गार ,
सहज में जीत लेंगे
प्यार से प्यार को ।
हम हिमालय से अडिग ,
सत्य की राह पर ,
कर्मठ , कर्मयोगी की तरह ,
" बुद्ध " के अनुयायी रहे हैं ,
हमें प्रलोभन और आशक्तियाँ
डिगा नहीं सकतीं ,
हमने क्रोध को जीत लिया है ,
जिस तरह "अंगुलीमाल " को
जीता था हमने
प्यार से , मृदुलता से , नम्रता से ।
आओ , आज हम ,
इस प्रांगन में प्रतिज्ञा करें -
अपने मृदुल व्यवहार और आचार से ,
नम्रता और विनम्रता से
जीत लेंगे , इस विश्व को ;
फिर कोई अंगुलिमाल पैदा न हो ,
जो , चुपके से मेरी उंगलियाँ काटे
या घाव कर दे मेरी उंगलियों में ,
अत: आओ ,
इस " झरोखे " को सजायें
मृदुलता और नम्रता की बेल से ।
( नोट - वर्ष 1988 में तत्कालीन वरिष्ठ मंडल वाणिज्य अधीक्षक , उत्तर रेलवे , मुरादाबाद
द्वारा पुरष्कृत )
जिससे झांकते हैं लोग ,
मेरे अन्दर का आदमी ,
जिसमें समाया है
पूरा रेल समाज ।
लोग मुझमें ही ढूंढते हैं
आस्था , सौम्यता ,
शीलता और विनम्रता ,
और
एक छवि बनाते हैं
सिर्फ मुझमें देखकर ।
"एक ही मछली ,
तालाब गंदा करती है "
यह कहावत चरितार्थ न हो
इस भारतीय रेल पर ,
इसलिये ,
आओ हम करें प्रतिकार
अपने अन्दर के दुर्गुणों का
और करें विस्तार
अपने हृदय के उद्गार ,
सहज में जीत लेंगे
प्यार से प्यार को ।
हम हिमालय से अडिग ,
सत्य की राह पर ,
कर्मठ , कर्मयोगी की तरह ,
" बुद्ध " के अनुयायी रहे हैं ,
हमें प्रलोभन और आशक्तियाँ
डिगा नहीं सकतीं ,
हमने क्रोध को जीत लिया है ,
जिस तरह "अंगुलीमाल " को
जीता था हमने
प्यार से , मृदुलता से , नम्रता से ।
आओ , आज हम ,
इस प्रांगन में प्रतिज्ञा करें -
अपने मृदुल व्यवहार और आचार से ,
नम्रता और विनम्रता से
जीत लेंगे , इस विश्व को ;
फिर कोई अंगुलिमाल पैदा न हो ,
जो , चुपके से मेरी उंगलियाँ काटे
या घाव कर दे मेरी उंगलियों में ,
अत: आओ ,
इस " झरोखे " को सजायें
मृदुलता और नम्रता की बेल से ।
( नोट - वर्ष 1988 में तत्कालीन वरिष्ठ मंडल वाणिज्य अधीक्षक , उत्तर रेलवे , मुरादाबाद
द्वारा पुरष्कृत )
No comments:
Post a Comment