हमने तो सूरज को धरा पर
लुंठित होते देखा है ,
चांदी से चमकते चाँद को भी
धरती पर झुकते देखा है ।
है वक्त वक्त की बात ,
न करना गर्व कभी अपने पर तुम ,
हमने राजा से रंक ,
रंक से राजा बनते देखा है ।
जो खड़ा रहा वह टूट गया ,
जो झुका रहा वह जीत गया ,
इस जीत हार के द्वंदों में ,
अपनापन खोते देखा है ।
वक्त की आंधी में हमने ,
पर्वत को मिटते देखा है ,
हमने परवाज के पर को भी ,
तिनके सा बिखरते देखा है ।
भाल भरोसे बैठ न तू ,
श्रम कर जितनी कर सकता है ,
हमने तद्वीरों के हाथों ,
तकदीर बदलते देखा है ।
लुंठित होते देखा है ,
चांदी से चमकते चाँद को भी
धरती पर झुकते देखा है ।
है वक्त वक्त की बात ,
न करना गर्व कभी अपने पर तुम ,
हमने राजा से रंक ,
रंक से राजा बनते देखा है ।
जो खड़ा रहा वह टूट गया ,
जो झुका रहा वह जीत गया ,
इस जीत हार के द्वंदों में ,
अपनापन खोते देखा है ।
वक्त की आंधी में हमने ,
पर्वत को मिटते देखा है ,
हमने परवाज के पर को भी ,
तिनके सा बिखरते देखा है ।
भाल भरोसे बैठ न तू ,
श्रम कर जितनी कर सकता है ,
हमने तद्वीरों के हाथों ,
तकदीर बदलते देखा है ।
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