पहाड़ की मानिंद होती हैं बेटियाँ ,
आत्मविश्वास से परिपूर्ण ,
अटल , अडिग और सुदृढ़ ,
अनमोल रत्न हैं बेटियाँ ।
देती हैं समस्याओं को चुनौतियां ,
करती हैं विसंगतियों पर प्रहार ,
गढ़ती हैं इतिहास ,
लाती हैं सामाजिक क्रांतियाँ ।
बेलन से रोटी बेलती बेटियाँ ,
दिखाती हैं प्रगति के पथ ,
रोटी बेलते लगातार चलते हाथ ,
बताते हैं श्रम का महत्व ।
कपड़े सिलती बेटियाँ ,
सूई में धागा पिरोती बेटियाँ ,
पिरोती हैं एक सूत्र में
परिवार , समाज और देश ।
जिनकी हंसी है स्वर्गमयी ,
जिनकी गोद है देवभूमि ,
जिनकी वाणी में है सरस्वती ,
जिनकी भुजाओं में है दुर्गा
लक्ष्मी हैं बेटियाँ ।
बेटियाँ नहीं होती हैं भार ,
होती हैं माँ की सहेली
पिता की लाडली
फूल सी सुंदर , फूल सी कोमल
महकाती हैं पूरे घर और आँगन
बेटियाँ , बेटियाँ , बेटियाँ ।
( भारत सरकार ,वित्त मंत्रालय , राजस्व विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका " उत्तराखंड भारती " वर्ष 2010-2011 में प्रकाशित )
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