यह गाँधी का देश
यहाँ जर्जर जीवन पलता है ;
मानवता रोती यहाँ ,
यहाँ करुणा सिसकी भरती है |
क्या पूजूं , क्या याद करूँ
गाँधी राष्ट्र - विधाता ,
या अपनी ही क्षुधा बुझाने
बेच रहा हूँ कविता |
बेच रहा हूँ कविता ,
तन पर वस्त्र नहीं है ,
और पांव है नंगा ,
सिर पर छत्र नहीं है |
यहाँ कौन सुनता किसकी ,
है सबको अपनी प्यास ,
है कहाँ कलम में शक्ति
लिखूं भारत का इतिहास |
भारत का इतिहास , जहां ,
नित नए घात चलते हैं ,
भाषा , कुर्सी , शासन के
नित द्वेष यहाँ पलते हैं |
आजादी का होता है
कैसा सुंदर उपयोग ,
बेच धर्म , ईमान ,भोगते
सुरा - सुन्दरी भोग |
सुरा - सुन्दरी भोग ,
खुले अब बिकते हैं बाज़ार ;
भाषण - भूख सभी सस्ते
है सस्ता भ्रष्टाचार |
भूखा बचपन रोता है ,
तरुणाई भरती आह ;
कहाँ जा रहा देश , हे ,
गाँधी , नहीं दीखती राह |
( रेल राजभाषा , अप्रैल - जून ,१९९४ अंक में प्रकाशित )
यहाँ जर्जर जीवन पलता है ;
मानवता रोती यहाँ ,
यहाँ करुणा सिसकी भरती है |
क्या पूजूं , क्या याद करूँ
गाँधी राष्ट्र - विधाता ,
या अपनी ही क्षुधा बुझाने
बेच रहा हूँ कविता |
बेच रहा हूँ कविता ,
तन पर वस्त्र नहीं है ,
और पांव है नंगा ,
सिर पर छत्र नहीं है |
यहाँ कौन सुनता किसकी ,
है सबको अपनी प्यास ,
है कहाँ कलम में शक्ति
लिखूं भारत का इतिहास |
भारत का इतिहास , जहां ,
नित नए घात चलते हैं ,
भाषा , कुर्सी , शासन के
नित द्वेष यहाँ पलते हैं |
आजादी का होता है
कैसा सुंदर उपयोग ,
बेच धर्म , ईमान ,भोगते
सुरा - सुन्दरी भोग |
सुरा - सुन्दरी भोग ,
खुले अब बिकते हैं बाज़ार ;
भाषण - भूख सभी सस्ते
है सस्ता भ्रष्टाचार |
भूखा बचपन रोता है ,
तरुणाई भरती आह ;
कहाँ जा रहा देश , हे ,
गाँधी , नहीं दीखती राह |
( रेल राजभाषा , अप्रैल - जून ,१९९४ अंक में प्रकाशित )
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