"कश्मीर मत मांगो " पुस्तक की कुछ पंक्तियाँ ( १९६६ में प्रकाशित )
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1
सुन नगपति शैल पुकार रहा
अब खंड - खंड ललकार रहा -
मत शांति - शांति की भीख मांग , अब क्रान्ति जगत में फैला दे ,
ओ वत्स क्षुधा शोणित की है , दे शत्रु का वलिदान मुझे ।
२
उठ जाग सोये से अलस को छोर अब तो ,
गलबांही - चितवन कुछ समय तक छोर अब तो ,
प्राची क्षितिज पर ललित रवि को देख अब लो ,
कह रही माता खड़ी हो पास में,
ढल रहा आंसू इसी ही आस में ,
ढँक जाय कच्छ का रन अरि की लाश में ।
३
याद कर कुरु क्षेत्र अर्जुन कौरवों का ,
पार्थ का शर छोर धनु जब छूटता था ,
सुहाग कितनों का न जाने लूटता था ,
सन गई थी रक्त से मिट्टी यहाँ की ,
रूद्र भू तब बन गया रणक्षेत्र यह था ।
४
आओ वीरों आओ
मां को शीश नवाओ
मातृभूमि की रक्षा हेतु
अपना शीश कटा दो ।
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