Thursday, March 15, 2012

सावन में


सावन  में  घन  घिर - घिर  आवै
नहीं  आये  घर  साजन  मेरे
सावन  में  घन .................
वैरी  बदरवा  रहि - रहि  गरजै
कड़क  - तड़क  कर बिजुरी  चमकै   ,
मुझ  विरहन  को  देख पिऊ  बिन
रतिया  कारी  डरावे
सावन  में  घन ..................

रात  अंधरिया  बादर  करिया
वा  पे  झींगुर  झण - झण  बोले ,
मोर  पिया किस  हाल  कहाँ  हैं
मन  मोरा घबरावै
सावन  में घन ..................

उमड़ी  , घुमड़ी  के आवै  बदरवा
मुझ   विरहन   के  कांपै  जियरवा  ,
पिऊ  मेरे आ  जा  तरपत  हूँ  मैं
सावन  आग  लगावै
सावन  में  घन .....................

शाम  ढली  रतिया  भी आई
नहीं  कोई  खबर  पिया  की  आई  ,
आस  में  द्वार  खड़ी  मैं  कब  से
नयनन  नीर  बहावै
सावन  में  घन ..........................
 

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