सावन में घन घिर - घिर आवै
नहीं आये घर साजन मेरे
सावन में घन .................
वैरी बदरवा रहि - रहि गरजै
कड़क - तड़क कर बिजुरी चमकै ,
मुझ विरहन को देख पिऊ बिन
रतिया कारी डरावे
सावन में घन ..................
रात अंधरिया बादर करिया
वा पे झींगुर झण - झण बोले ,
मोर पिया किस हाल कहाँ हैं
मन मोरा घबरावै
सावन में घन ..................
उमड़ी , घुमड़ी के आवै बदरवा
मुझ विरहन के कांपै जियरवा ,
पिऊ मेरे आ जा तरपत हूँ मैं
सावन आग लगावै
सावन में घन .....................
शाम ढली रतिया भी आई
नहीं कोई खबर पिया की आई ,
आस में द्वार खड़ी मैं कब से
नयनन नीर बहावै
सावन में घन ..........................
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