मैं पानी हूँ
मेरा कोई रंग नहीं ,
मैं सदा नीचे रहता हूँ ,
जहां भी रहता हूँ
उसका हो जाता हूँ ,
नदी में , नालों में ,
ताल - तलैयों में ,
सागर में , बादल में ,
पहाड़ों की श्रृंखलाओं में ,
यहाँ तक , कि ,
तुम्हारे अंग - अंग में
समाया हुआ हूँ ।
मैं पानी हूँ ,
मैं तो बस बहता रहता हूँ ,
निरंतर चलता रहता हूँ ,
कोई पत्थर जब कभी
मेरी राह रोकता है
मैं रूक जाता हूँ ,
धीरे - धीरे उसकी जड़ें
खोदता हूँ , फिर ,
उसे अपने साथ
बहा ले जाता हूँ ,
किन्तु ,
जब कोई शिला
मेरे आवेग को रोकता है
उसे चकनाचूर कर
उसका अस्तित्व
मिटा देता हूँ ।
मैं पानी हूँ ,
तुम मुझे जहाँ भी
रखोगे ,
मैं सृजन ही करूंगा ,
पात्र हो या कुपात्र ,
कीचड़ में भी
कमल खिलाता हूँ ,
पहाड़ों में बहता हूँ
झरना बन जाता हूँ ,
गंगा में बहता हूँ
पावन हो जाता हूँ ,
खेतों में बहता हूँ
सोना उगलता हूँ ,
सागर में जाता हूँ
असीम संपदा का
स्वामी होता हूँ ,
मैं वैभवशाली हूँ ,
मैं पानी हूँ ।
मेरा कोई रंग नहीं ,
मैं सदा नीचे रहता हूँ ,
जहां भी रहता हूँ
उसका हो जाता हूँ ,
नदी में , नालों में ,
ताल - तलैयों में ,
सागर में , बादल में ,
पहाड़ों की श्रृंखलाओं में ,
यहाँ तक , कि ,
तुम्हारे अंग - अंग में
समाया हुआ हूँ ।
मैं पानी हूँ ,
मैं तो बस बहता रहता हूँ ,
निरंतर चलता रहता हूँ ,
कोई पत्थर जब कभी
मेरी राह रोकता है
मैं रूक जाता हूँ ,
धीरे - धीरे उसकी जड़ें
खोदता हूँ , फिर ,
उसे अपने साथ
बहा ले जाता हूँ ,
किन्तु ,
जब कोई शिला
मेरे आवेग को रोकता है
उसे चकनाचूर कर
उसका अस्तित्व
मिटा देता हूँ ।
मैं पानी हूँ ,
तुम मुझे जहाँ भी
रखोगे ,
मैं सृजन ही करूंगा ,
पात्र हो या कुपात्र ,
कीचड़ में भी
कमल खिलाता हूँ ,
पहाड़ों में बहता हूँ
झरना बन जाता हूँ ,
गंगा में बहता हूँ
पावन हो जाता हूँ ,
खेतों में बहता हूँ
सोना उगलता हूँ ,
सागर में जाता हूँ
असीम संपदा का
स्वामी होता हूँ ,
मैं वैभवशाली हूँ ,
मैं पानी हूँ ।
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