फूल सा धूसरित ,
नन्हा सा मुन्ना है
खेल रहाआँगन के कोने में ....
ठीकरों के पैसे
मिट्टी की बाटी ,
कंकर की दाल बनी
कागज़ की भाजी .....
झूल रहा जंत्री है
चांदी का , सीने पर ,
दीपित है हो रहा
जैसे टंका , सोने में .....
अम्मा को देख कर
किलकारी भरता है ,
नन्हे से पांवों से
नन्हा पग धरता है ,
गिरता है ,उठता है ,
भाग ,फिर भी जाता है ......
पांवों के पायल की
रुन-झुन भी बजती है ,
कटि में भी उसके ,
करधनी सजती है,
शोभ रही, सिर पर
लाल-लाल चोटी है ..........
भागता है भागता है
थक जब वह जाता है
गिर तब वह जाता है ,
अम्मा को देख कर
मधुर-मधुर हंसता है ,
मुस्कुरा देता है
जीत पर या हार पर
अपनी ही .........
अम्मा भी आती है
अंक लगा लेती है
पान करा देती है
अमृत का , स्नेह से ,
आँचल की छांव में
लेती बलैया है ...........
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