Thursday, June 3, 2021

रोटी

रोटी कब सस्ती हुई ?
रोटी कल्ह भी मँहगी थी ,
रोटी  आज भी मँहगी है ,
सब काम -धंधा बन्द  ,
मेहनत - मजूरी बन्द ,
जो चार पैसे कमा लाते थे ,
सब बन्द  ,
ऐसे में रोटी हाथ से
बहुत दूर चली जाती है ,
रोटी , गोल - गोल रोटी ,
लहक कर कभी चाँद बन जाती ,
कभी सूरज बन जाती ,
कभी सितारों में  टाँक दी जाती ,
हाथ से दूर , बहुत दूर चली जाती   .......
माँ बच्चे से कहती -
सो जा मेरे लाल , सो जा ,
चाँद तोड़ लाने की जिद्द ,
बच्चे माँ से करते ,
ला दो न माँ ,
तोड़ कर चाँद ,
खा लेंगे रोटी !
माँ  क्या बताये !
कहती , सो जा मेरे लाल ,
रात चाँद आयेगा ,
तुम्हारे सपनों में ,
तुम्हे रोटी दे जायेगा ,
बच्चा , फिर एक बार मचलता ,
फिर सो जाता .......
माँ सोचती ,
सबको रोटी मिलेगी ,
आश्वासन तो मिला ,
रोटी नहीं मिली ,
जो कुछ मिला ,
वह नून भर भी तो  नहीं था ,
वह भी बहुत दिन  हो गये ,
इसी खयाल में रात  बीत गई ,
सुबह देर  तक सोई रही ,
जब आँख खुली ,
बाहर डुगडुगी पिट रही थी ,
आज कैम्प में ,
रोटी बाँटी जायेगी ,
जिसे चाहिये , आ जाना ,
उसने पलट कर देखा -
बच्चा सो रहा था ,
निश्छल , निश्चल ,
उसने बच्चे को हिलाया ,
पर ,यह क्या !
वह सन्न रह गई ,
बच्चा रोटी के लिये
चाँद पर चला गया ,
सितारों  के बीच  चला गया ,
सूरज  के पास चला गया ,
नहीं , अब लौट कर नहीं आयेगा ,
यों ही डुगडुगी पिटती रहेगी ,
यों ही ,
रोटी पर खेल होता रहेगा ,
हर काल में ,
यों ही ,
रोटी लुढ़क कर
चाँद पर चली जायेगी ...... 
रोटी कब सस्ती हुई ?
रोटी , कल्ह भी मँहगी थी ,
रोटी आज भी मँहगी है     .........
रोटी ! रोटी ! रोटी !

रचना तिथि - 12.04.2021

 

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