Friday, October 21, 2016

ऐसी प्रीति न चाहिये

भँवरा बोला कली से , सुनो हमारी बात ,
शाख झुलाता है तुम्हें , दुलराती है रात।

तेरा मेरा प्रेम तो जग में है विख्यात  ,
झूठ नहीं मैं बोलता , सच्ची है यह बात।

आ लग जा मेरे गले चूमू तेरा माथ ,
नतमस्तक भँवरा हुआ, ले आँसू की सौगात ।

है बेला यह प्रेम का , करो प्रेम की बात ,
बीत न जाए समय यह , बीत ना जाए रात।

आया है मधुमास यह , करो प्रीति की बात,
अंग - अंग में रंग भरूँ , जो छू लूँ तेरे गात।

कहा कली ने भँवर से , तू भी सुन एक बात ,
दिन भर फिरता बाबरा , कहाँ बितायी रात ?

डाली - डाली जा मिले , बुझी न दिल की प्यास ,
तू आवारा शूल है , कर सकता है घात।

मैं हूँ कोमल सी कली , मखमल जैसे गात ,
जो छू लेगा तू मुझे , जल जायेगी गात।

ऐसी प्रीति न चाहिये , जा सौतन के पास ,
रंग उन्हीं पर डारियो , जहाँ बिताई रात।

रख अधरों पर हास अलि , गया कली के पास ,
सुनो सुनाता हूँ कथा , जहाँ बिताई रात।

शाम ढले मैं घूमता  , पहुँचा सरवर पास ,
बैठा सरसिज पंखुरी , बिना विचारे बात।

शतदल ने छल से मुझे , लिया पाश  में बांध ,
कैद रहा मैं अंक में , बीत गयी यह रात।

प्रात काल सूरज जगा , जग में हुआ प्रभात ,
मुक्त हुआ मैं कैद से ,खुले कमल के पात।

मैं कुरूप हूँ रंग से , और न दूजा खोट ,
तन व मन मेरा है शुचि , जैसे कदली पात।

है कोमल सा दिल  मेरा , करो नहीं आघात ,
हँस कर देवी ग्रहण करो , प्रीत भरा सौगात।




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