ज्यों उठा उदधि में ज्वार ,जगा शौर्य जन - जन में ,
गूँजा शंखनाद आज , है भारत के प्रांगण में।
मोल लहू से कम ना हो , मातृभूमि पर हुए शहीद ,
जीवन जिसने वार दिया , सरहद पर अरिमर्दन में।
कर हुँकार गर्जना सिंह सा , अरि दल पर जब टूट पड़े ,
मानो काल - कराल आज , खड़ा शत्रु के आँगन में।
गुह्य गढ़ को भेद अरि के , पहुँच गया वह अरि गढ़ में ,
जैसे मद से मत्त शत्रि , जा पहुँचा कदलीवन में।
अरि पर कर भीषण प्रहार , घाट मौत के सुला दिया ,
तहस - नहस कर शत्रु शिविर , जग को नव संदेश दिया।
देख पराक्रम के वैभव को , जग ने जयजयकार किया ,
माँ के वीर सपूतों को ,देवों ने भी नमन किया।
गूँजा शंखनाद आज , है भारत के प्रांगण में।
मोल लहू से कम ना हो , मातृभूमि पर हुए शहीद ,
जीवन जिसने वार दिया , सरहद पर अरिमर्दन में।
कर हुँकार गर्जना सिंह सा , अरि दल पर जब टूट पड़े ,
मानो काल - कराल आज , खड़ा शत्रु के आँगन में।
गुह्य गढ़ को भेद अरि के , पहुँच गया वह अरि गढ़ में ,
जैसे मद से मत्त शत्रि , जा पहुँचा कदलीवन में।
अरि पर कर भीषण प्रहार , घाट मौत के सुला दिया ,
तहस - नहस कर शत्रु शिविर , जग को नव संदेश दिया।
देख पराक्रम के वैभव को , जग ने जयजयकार किया ,
माँ के वीर सपूतों को ,देवों ने भी नमन किया।
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