Thursday, September 17, 2015

फैसला मधुमखियों का

मुहल्ले वाले सभी जानते थे ,
जानते क्या थे , 
उन्हें बताया गया था 
वह नालायक बेटा था , बड़ा था ,
वह दूसरे बड़े शहर में रहता था , 
हजार किलोमीटर दूर ,
अपने बीबी - बच्चों के साथ ,
रहता क्या था - उसकी नौकरी ही                           
बहुत दूर के शहर में लगी थी।
वे यह भी जानते थे, कि
वह पहले ऐसा नहीं था ,
आस - पड़ोस की बस्ती के लोग भी
उसे जानते थे , प्यार करते थे ,
वह था ही ऐसा ,
वह सब के सुख- दुःख में
हाथ बँटाता था ,
पर शादी के बाद
बीबी - बच्चों को लेकर
शहर चला गया।
कुछ वर्षों तक तो
वह घर आता रहा ,
फिर धीरे - धीरे उसका
आना कम हो गया।
डाकिया बताता था
वह शहर से पैसे भेजता था ,
पर पास - पड़ोस , दोस्त - मोहिम
जानते थे कि
वह कुछ भी नहीं भेजता था ।
यह सच था या अफवाह !
              ( 2  )
वक्त बीतता रहा , 
माता - पिता बूढ़े हो गए , 
और फिर एक दिन
पिता चल बसे ,
वह आया , 
पत्नी - बच्चों के साथ।
वह सर्द भरी रातें  थीं ,
तीन दिनों का सफर ,
वह पिता के ,
अंतिम दर्शन नहीं कर सका ,
फूट - फूट कर रोया  ....
मुखाग्नि मँझले भाई ने दी थी ,
आगे के क्रिया - कर्म का भार
बड़े ने लिया।
अंतिम दिन ,
रीति - रिवाज के अनुसार
माँ के लिए सोने या चाँदी की
चूड़ियाँ चाहिए थीं ,
मँझले ने चुप्पी साध ली थी ,
बड़े चाँदी की चूड़ियाँ ले आया।
मेहमानों के विदा होने के बाद
वह भी बीबी - बच्चों के साथ
वापस लौट आया , शहर ........ 
अपने नौकरी की ठाँव। 
           ( 3  )
एक छोटा बेटा भी था ,
वह भी ,
दूर दूसरे शहर में रहता था ,
उसे इन सब बातों से 
कोई मतलब नहीं था ,
माँ मँझले  बेटे के साथ रहती थी ,
कभी - कभार
बड़े के पास भी आ जाती थी।
संभवत:
भाईओं के बीच
दीवार सी खिंच गईं थीं ,
मँझली बहू उलाहना देती -
अकेले हम ही मरते हैं ,
सभी मौज करते हैं ,
माँ खामोश सुनती रहती थी।
कभी - कभी ,
बड़े को खत लिखती  -
अब आँख से ,
दिखाई नहीं देती है ,
डॉक्टर ऑपरेशन को बोला है ,
मँझले को समय नहीं है , कहता है - 
यहाँ अच्छा डॉक्टर नहीं है , 
पटना जाना होगा , 
तुम आ कर ले जाओ।
तुम्हारे बेटे ने जो मुझे 
हजार रूपये भेजे थे ,
वह मेरे पास पड़ा है ,
मैंने किसी को नहीं दिया है।
           ( 4  )
कुछ दिन बाद वह आया ,
माँ को ले गया ,
माँ की आँख का , 
ऑपरेशन हो गया ,
माँ को अब
सब कुछ
साफ-साफ दिखने लगा।
एक दिन माँ ने कहा -
मेरे पास वह रूपये पड़े हैं ,
मुझे अच्छा सा शॉल ला दो।
बड़ी बहू बाजार गई ,
एक अच्छा सा शॉल खरीद लाई ,
माँ को दिया।
मँहगा होगा , कितने का होगा ?
माँ ने कहा ,
बहू ने हँस कर पूछा -
आपको पसंद आई -
" हाँ "-माँ ने संक्षिप्त उत्तर दिया।
शाम को ऑफिस से बेटा आया,
माँ ने कहा - 
मेरे पास वो पैसे पड़े हैं ,
बेकार हैं ,मुझे क्या काम है ,
बेटे ने कहा - 
अपने पास ही रहने दो ,
कभी काम आयेगें।
कुछ दिन बाद,
माँ ने रट लगा दिया -
मुझे गाँव पहुँचा दो  ....
माँ गाँव आ गई ,
लोगों ने देखा -
नया चश्मा लग गया है ,
वह अब देख सकती है ,
पढ़ - लिख भी लेती है ,
लोगों ने आपस में
कानाफूसी की -
माँ की आँख ठीक हो गई ,
बड़े ने  ......
         ( 5  )
माँ ने बड़े को खत लिखा -
मेरा चश्मा टूट गया है ,
देखने में परेशानी होती है ,
मँझले को 
समय नहीं मिलता है ,
इस छोटे शहर में
अच्छे चश्मे की 
दुकान नहीं है ,
कह रहा था -
पटना जाना होगा ,
तुम एक दिन के लिए 
आ जाओ ,
मेरा चश्मा बनबा दो  .....
और फिर एक दिन
मँझली बहू का फोन आया -
माँ गिर गई है , कोमा में है ,
अस्पताल में एडमिट  है ,
आप आ जाओ ,
ये भी यहाँ नहीं हैं ।
सूचना मिलते ही
वह रवाना हो गया ,
बेचैनी , चिन्ता और 
छटपटाहट में ही
दो रातें काट गईं ,
दो दिन बाद , 
तीसरे दिन सुबह सवेरे 
वह शहर पहुँच गया।
        ( 6  )
 बड़े ने देखा -
जिसको बहू ने 
अस्पताल बताया था ,
वह एक सीलन भरा 
बदबूदार कमरा है  ,
जहाँ ,
मच्छर-मक्खियों की भरमार है ,
भीतर घुप्प अन्धेरा है ,
एक मद्धिम लालटेन की लौ
टिमटिमा रही है ,
अंदर और भी कई मरीज भर्ती हैं ,
यह, एक प्राइवेट डॉक्टर का
नर्सिंग होम है ,
बाहर घना कोहरा है , 
ठंढ बहुत है ,
धूप का नाम नहीं है ,
माँ एक झीनी साड़ी में लिपटी ,
नंगे तख्त पर अचेत पड़ी हुई है ,
कुछ - कुछ साँस चल रही है ,
आँखें खुली हैं ,
कभी - कभी पुतली हिलती है ,
बोल नहीं सकती ,
उसके मुँह से लार निकल रही है ,
सिर के पास ही
गंदे कपड़े का टुकड़ा पड़ा है ,
उसी टुकड़े से मँझले के बेटे ने
माँ का मुँह पोंछ दिया है  .......
बड़ी बहू ने माँ के पैर छूए -
एकदम सर्द ,
उसने अपने पैर के मोजे उतारे ,
माँ को पहनाया -
माँ के पैर के पास बैठ कर
उनके पैर सहलाने लगी -
कुछ गर्मी आ जाए ,
घर से तकिया - गद्दा मंगवाया ,
उसे तख्त पर डाल कर
माँ को लिटाया ,
फिर अपने बैग से
छोटा तौलिया निकाला ,
गंदे कपड़े के टुकड़े को 
फिंकवाया ,
अपने चचेरे देवर से
मच्छर भगाने वाला 
क्वॉयल मंगवाया ,
जलाया ,
ताकि मच्छर भाग सकें  ,
अगरवत्ती मंगवाई
ताकि दुर्गन्ध दूर हो ,
रूई मंगवाई ,
डेटॉल मंगवाई ,
साफ पानी का बॉटल मंगवाया ,
ताकि,
माँ का मुँह 
साफ़ किया जा सके.......
बड़ी बहू 
सास की सेवा में लग गई -
माँ ! हम आ गए हैं ,
कुछ तो बोलिये -
माँ एक टक देखती रह गई ,
बोली कुछ नहीं , 
हाँ ,
उसकी आँखों से 
आँसू की दो बूंदें निकलीं   ......
उसी दिन शाम के वक्त
माँ चल बसीं ,
मँझली बहू 
दहाड़ मार कर रोने लगी ,
पर, बड़ी , शांत रही - स्तब्ध !
           ( 7  )
सुबह हो गई थी ,
माँ को नहलाया गया ,
अर्थी पर लिटाया गया -
बड़ा बेटा चौंका -
माँ के कान का कुंडल ?   
उसने कल ही तो कहा था -
माँ के शरीर पर से
कुछ भी न उतारा जाये ,
उसने इशारे से
पास ही खड़े पत्नी से पूछा ,
उसने इशारे में कहा -
उसे नहीं मालूम ,
रिश्तेदार और पड़ोसियों की 
भीड़ खड़ी थी ,
वह चुप रह गया  .....
बाद में ज्ञात हुआ , कि ,
मँझली बहू के कहने पर ,
मंझले बेटे ने ,
मौका  पाते ही किसी समय
माँ के कान का कुंडल 
निकाल लिया था ,
मँझले की हठधर्मिता के कारण,
अंतिम संस्कार
बहत देर रात को ही हो पाया ,
बड़ा चुप रहा ,
उसकी हर बात का 
विरोध होता रहा।
          ( 8  )
फिर वह दिन आया -
क्रिया - कर्म का आखिरी दिन ,
इस दिन सारे रिश्तेदार आये हुए थे ,
किसी बड़े पेड़ के नीचे
कुछ कर्म - काण्ड करने थे
बड़े को ही सारे विधान निपटाने थे ,
आज वह केवल एक सफेद -झख
धोती पहने था ,
बदन पर और कुछ नहीं था ,
सिर भी घुटा हुआ था ,
पंडित मंत्र पढ़ रहे थे  -
दान माँग रहे थे -
बड़ी खुशी की बात है जजमान ,
आप किस्मत वाले हैं ,
माँ को मुक्ति मिली है ,
वह सीधे स्वर्ग गईं ,
5100 रूपये दान दीजिये -
इससे कुछ कम नहीं   …
बेटे ने सिर्फ इतना ही कहा -
पंडित जी, 
आपको खुशी मिलती होगी ,
दान - दक्षिणा श्रद्धा होता है ,
पंडित नहीं मान रहे थे -
तभी , न जाने कहाँ से
मधुमक्खियों का झुण्ड 
आ धमका ,
वहाँ पर बैठे सभी लोगों पर
हमला कर दिया ,
अप्रत्याशित हमला ,
पंडित जी चिल्लाये -
जजमान को बचाईये ,
नंगे बदन हैं -
बेटे ने कहा - मुझे कुछ नहीं होगा ,
इतना विश्वास !
एक छोटा चचेरा भाई ,
बदहवास घर को दौड़ा ,
कम्बल लाने को ,
भैया को बचाना है ,
अफरा - तफरी मच गई ,
जान बचाने को
लोग इधर - उधर भागने लगे ,
पानी में भी कूदे ,
मधुमक्खियाँ 
दूर तक पीछा कर रही थीं ,
पानी में भी ,
कईयों को उसने 
बुरी तरह जख्मी कर दिया ,
मँझले बेटे और 
उसके बेटे को भी
मधुमक्खियों ने नहीं बख्शा ,
बड़े ने 
वही धोती नंगे बदन पर 
ओढ़ ली थी ,
घर में , बस्ती में 
कोहराम मच गया ,
पर, यह क्या ?
लोगों ने देखा -
मधुमक्खियों ने
बड़े को 
बिलकुल ही नहीं काटा ,
इस नालायक बेटे को
मधुमक्खियों ने नहीं काटा ,
मधुमक्खियों को शायद,
पता था ,
किसे काटना है ,
और , किसे नहीं   ....... 
कौन लायक है ,
और कौन 
नालायक .... 

             ---- विजय कुमार सिन्हा
                    डी - 40 , रेस कोर्स ,
                     देहरादून।
रचना तिथि - वर्ष 2011 
ब्लॉग  -   2015   
  







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