आओगे प्रिय अन्धकार में ,
दीपक ले कर आ जाऊँगी ,
चन्द्रहीन आकाश अगर हो ,
चाँद बांध कर ले आऊँगी ।
यदि चले मरुत उन्न्चास ,
फिर हास करे , कर अट्टहास ,
राह पवन का रोकूंगी ,
आँचल दीवार बनाऊंगी ।
तेरे पथ के काँटों को मैं ,
अपने आँचल भर लाऊँगी ,
मैं जीवन के उद्गार सभी ,
तुझ पर अर्पित कर जाऊँगी ।
( 29 - 2 -1968 को रचित )
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