" राष्ट्रध्वजा फहरायें "
आज दिवाकर के रथ पर चढ़ किरणें दमक रही हैं ,
रक्तिम आभा भारत के कण - कण में घोल रही हैं ।
चटख पड़ी हैं कलियाँ अपना सौरभ लुटा रही हैं ,
आज़ादी का नया तराना कोकिल सुना रही है ।
पंखुड़ियों में लाली भर कर है गुलाब मुस्काया ,
सदियों के ही संघर्षों पर यह मीठा सपना पाया ।
आज हरष से हरित हो उठी इस धरती की काया ,
नील गगन में आज़ादी का झंडा है लहराया ।
आओ हम सब भी मुस्कायें इस झंडे के नीचे ,
सत्य , अहिंसा और प्रेम से इस झंडे को सींचें ।
प्रण कर इसकी रक्षा का व्रत हमसब को है लेना ,
सदा देश की रक्षा हित , है तन - मन - धन सब देना ।
लाल रंग पूरब की लाली जागो देश के वीरों ,
लाल देश की मिट्टी है और लाल खून की लाली ।
श्वेत , शांत , सौजन्य प्रतीक है हम सब वीरों का ,
हरा रंग है शस्य - श्यामला धरती की हरियाली ।
गोल चक्र है पहिया रथ का भारत की धरती का ,
सत्य , अहिंसा और शान्ति का फैलाता संदेशा ।
गाता है यह गीत प्रगति का , गा - गा कर कहता है ,
आयें लाखों विघ्न , रुकेंगे , नहीं एक भी क्षण हम ।
आओ , आया आज समय , हम संकल्पों को दुहरायें ,
छोड़ो बीती बात , नया हम हिन्दुस्तान बनायें ।
देश की सेवा में ही जीवन हम अर्पित कर जायें ,
आओ मिलकर आज , तिरंगा राष्ट्रध्वजा फहरायें ।
( अगस्त 1 9 67 में रचित )
रक्तिम आभा भारत के कण - कण में घोल रही हैं ।
चटख पड़ी हैं कलियाँ अपना सौरभ लुटा रही हैं ,
आज़ादी का नया तराना कोकिल सुना रही है ।
पंखुड़ियों में लाली भर कर है गुलाब मुस्काया ,
सदियों के ही संघर्षों पर यह मीठा सपना पाया ।
आज हरष से हरित हो उठी इस धरती की काया ,
नील गगन में आज़ादी का झंडा है लहराया ।
आओ हम सब भी मुस्कायें इस झंडे के नीचे ,
सत्य , अहिंसा और प्रेम से इस झंडे को सींचें ।
प्रण कर इसकी रक्षा का व्रत हमसब को है लेना ,
सदा देश की रक्षा हित , है तन - मन - धन सब देना ।
लाल रंग पूरब की लाली जागो देश के वीरों ,
लाल देश की मिट्टी है और लाल खून की लाली ।
श्वेत , शांत , सौजन्य प्रतीक है हम सब वीरों का ,
हरा रंग है शस्य - श्यामला धरती की हरियाली ।
गोल चक्र है पहिया रथ का भारत की धरती का ,
सत्य , अहिंसा और शान्ति का फैलाता संदेशा ।
गाता है यह गीत प्रगति का , गा - गा कर कहता है ,
आयें लाखों विघ्न , रुकेंगे , नहीं एक भी क्षण हम ।
आओ , आया आज समय , हम संकल्पों को दुहरायें ,
छोड़ो बीती बात , नया हम हिन्दुस्तान बनायें ।
देश की सेवा में ही जीवन हम अर्पित कर जायें ,
आओ मिलकर आज , तिरंगा राष्ट्रध्वजा फहरायें ।
( अगस्त 1 9 67 में रचित )
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