मेरी बरबादियों पर
आँसू बहाने वालों ,
तुम अपनी
माँ , बहनों की
अस्मत ही बचा लो
तो , बहुत है ।
हर जगह भेड़िये
घूम रहे हैं
बदल कर वेष इन्सां का
इन भेड़ियों से
खुद को ही बचा लो
तो , बहुत है ।
घर हो या हो बाहर ,
स्कूल या दफ़्तर ,
कहीं भी महफूज़
नहीं हैं बेटियाँ ,
इन बेटियों को बचा लो
तो , बहुत है ।
वहशियाना है बहुत ही
इन दरिन्दों का क़हर ,
इन दरिन्दों से
अपने शहर ही
बचा लो
तो , बहुत है ।
------- ( प्रकाशित )
आँसू बहाने वालों ,
तुम अपनी
माँ , बहनों की
अस्मत ही बचा लो
तो , बहुत है ।
हर जगह भेड़िये
घूम रहे हैं
बदल कर वेष इन्सां का
इन भेड़ियों से
खुद को ही बचा लो
तो , बहुत है ।
घर हो या हो बाहर ,
स्कूल या दफ़्तर ,
कहीं भी महफूज़
नहीं हैं बेटियाँ ,
इन बेटियों को बचा लो
तो , बहुत है ।
वहशियाना है बहुत ही
इन दरिन्दों का क़हर ,
इन दरिन्दों से
अपने शहर ही
बचा लो
तो , बहुत है ।
------- ( प्रकाशित )
No comments:
Post a Comment