मैं हिमालय हूँ , यहाँ सदियों से खड़ा हूँ ,
नदियों का उद्गम हूँ , जीवन का सरगम हूँ ।
मेरे चारों ओर , इधर - उधर फैले हुए
ये छोटे - बड़े पहाड़ , मेरी बाँहें हैं ।
ये झील , ये झरने , ये बहते जलप्रपात ,
पहाड़ों से निकलती , छोटी - बड़ी नदियाँ ,
मेरे वक्ष पर उगे , ये हरे - भरे पेड़ ,
मेरी धमनियाँ हैं , मेरी शिराएँ हैं ।
विकास के नाम पर तुमने मेरी बाँहें काट दीं ,
तुमने मेरी धमनियाँ काट दीं , शिराएँ काट दीं ।
मत काटो मेरी बाँहों , धमनियों औ शिराओं को ,
मुझे बचा लो , बचा लो मुझे , मेरा दम घुटता है ।
मैं जीवित रहूँगा , तो , नदियाँ भी जीवित रहेंगी ,
नदियाँ जीवित रहेंगी - तुम सब भी जीवित रहोगे ,
अगर नदियाँ सूखेंगी , तुम सब भी सूख जाओगे ,
हर ओर विनाश होगा , विनाश ही विनाश होगा ।
गर विनाश से बचना है - इस हिमालय को बचाओ ,
जीवन बचाओ , नदियाँ , पहाड़ और जंगल बचाओ ।
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