कुछ बंद , कुछ ग़ज़ल
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1
ज़ब नूर ख़ुदा का दिखता है ,
तब चाँद ईद का आता है ,
खुशियों का चमन मुस्काता है ,
यह मन मयूर हो जाता है ।
2
ज़र्रे - ज़र्रे में नूरे ख़ुदा होता है ,
उसके रहम से ही करम उसका अता होता है ।
3
सुकून की इस दुनियाँ में ,
गमे दरिया भी है ,
हो जो करम ख़ुदा तेरा ,
हर गम फ़ना होता है ।
4
सब्र कर ,
रखना न दिल में कोई गुमान तुम ,
मिल सब से गले ,
न जाने किस में ख़ुदा मिलता है ।
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1
ज़ब नूर ख़ुदा का दिखता है ,
तब चाँद ईद का आता है ,
खुशियों का चमन मुस्काता है ,
यह मन मयूर हो जाता है ।
2
ज़र्रे - ज़र्रे में नूरे ख़ुदा होता है ,
उसके रहम से ही करम उसका अता होता है ।
3
सुकून की इस दुनियाँ में ,
गमे दरिया भी है ,
हो जो करम ख़ुदा तेरा ,
हर गम फ़ना होता है ।
4
सब्र कर ,
रखना न दिल में कोई गुमान तुम ,
मिल सब से गले ,
न जाने किस में ख़ुदा मिलता है ।
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