Thursday, February 16, 2012

चलो उठो नई राह बनाओ


चलो उठो नई  राह बनाओ
,बैठ के यूँ  न समय गंवाओं ,
जो बीता
उसे याद न लाओ ,
राम रहीम की
बात न सोचो ,
काम ही काम की
बात को सोचो ,
नए नए
आयाम  बनाओ ,
चलो उठो
नई राह बनाओ  ।

बाधाओं से
मत घबराओ ,
संम्बल को
पतवार बनाओ ,
बीच भंवर
कश्ती फँस जाती ,
लहरें  मौत का
भय दिखलातीं ,
नहीं मांझी
हिम्मत को हारे ,
ले आये
कश्ती को किनारे  ।

 नहीं कभी ,
जो हार मानता ,
झंझाओं  से
हाथ मिलाता ,
साहस के बल
भाग्य बदलता ,
जग उसकी
जय गीत  है गाता।
दिल में
इक तूफान जगाओ,
मन में
इक संकल्प बिठाओ ,
चलो उठो ,
नई राह बनाओ  ।


Wednesday, February 8, 2012

सुबह के ओस कण

हरी घास पर  , किसी  आस पर 
पड़ा मौन था  कोमल   पानी   ,
मोती  के  दानों  के  जैसा 
श्वेत  बूंद  था , गौर  ललाट
हवा  के झोंके  से रह रह कर 
था काँप   रहा जलकण विराट .......

प्रात  का आभाष    पाकर  
मौन मलिन मुस्कान लाकर 
गा उठा  वह   क्षीण  राग से ......
विस्तृत रवि की किरणें 
प्रणय भाव से , ले  चला 
स्वर्ग  द्वार  की  ओर...........

विजय कुमार सिन्हा "तरुण"

Friday, February 3, 2012

आया वसंत का मधु मौसम

                                                                                                    











कलियाँ  चटकीं कचनार खिले ,
गुलमोहर के मुख लाल हुए ,
चहकीं चिड़ियाँ बहका  पवन
मदमस्त हुआ तन-मन योवन ।                   

फूलीं सरसों महका बयार ,
हो रहा धरा का नव श्रृंगार  ,
उन्मद समीर गाता मल्हार ,
चल नाविक तू चल मझधार ।

नदियों की चंचल लहर -लोल , 
प्रमुदित हो करती हैं   किलोल ,
कुंजों में कोकिल का सरगम , 
है पात -पात बिखरा शबनम ,

सुन कर भौरों का गुन-गुन -गुन , 
फूलों पर छाया है   फागुन  , 
इतरा -इतरा कर शाखों   पर ,
कर रहे भ्रमर का  आलिंगन  । 

सूरज की रक्तिम किरणों से , 
सरसिज सरवर का महक उठा ,
गिरी भी बुरांस के   फूलों  से ,
दावानल जैसा  दहक   उठा । 

अनुपम है यह रूप धरा   का , 
अंग -अंग है   निखर    रहा , 
कामदेव के  पुष्पवान    से , 
संयम मन का बिखर  रहा

मधु -ऋतु के अंगड़ाई    से ,
भींग रहा  है  अंतरतम  , 
आया वसंत का मधु -मौसम ,
आया वसंत का मधु -मौसम ।