विजय कुमार सिन्हा "तरुण" की काव्य रचनाएँ.
इन्सानों की बस्ती में ,
गुलदार घुस आया ,
कुछ को उसने ,
गुलदार बनाया ,
कुछ को निवाला ,
फिर क्या था था !
देखते - देखते ,
इन्सानों की बस्ती ,
गुलदारों की बस्ती बन गई ,
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