Thursday, September 14, 2023

बहुत नाजुक होते हैं , बच्चे

बहुत नाजुक होते हैं , बच्चे ,
गुलाब की पंखुड़ियों से भी ज्यादा ,
जरा सी गरम हवा चली नहीं , कि ,
मुरझा जाते हैं , या ,
फिर बिखर जाते हैं बच्चे।
जरा , इन्हें , प्यार से पुकारो तो !
सीने से लग जाते हैं बच्चे ,
उड़ेल देते हैं
अपना सारा प्यार ,
बिना भेद - भाव ,
ऊँच - नीच को नहीं जानते ,
जात - पात को नहीं जानते ,
जानते हैं -
बस , केवल प्यार।
इन्हें प्यार से सींचों ,
खिलने दो इन्हें ,
रचने दो इन्हें
अपना एक नया संसार ,
उड़ने दो इन्हें ,
तितलियों के संग ,
तितलियों की तरह।
सुन्दर फूल हैं
बिल्कुल ,
डैफोडिल्स  ( Daffodils ) की तरह ,
बहुत नाजुक होते हैं बच्चे
गुलाब की पंखुड़ियों से से भी ज्यादा   ...... 

Wednesday, April 12, 2023

गुलदारों की बस्ती

  इन्सानों की बस्ती में ,

  गुलदार घुस आया ,

कुछ को उसने ,

गुलदार बनाया ,

कुछ को  निवाला ,

फिर क्या था था !

देखते - देखते ,

इन्सानों की बस्ती ,

गुलदारों की बस्ती बन गई ,

Wednesday, March 15, 2023

बूढ़ी औरत

हाँ ,
वह एक बूढ़ी औरत है ,
उसकी बांयी हाथ ,
उसके कमर पर है ,
उसकी दांयी हाथ में ,
एक सोटा है ,
गो , कि उसकी कमर ,
अभी झुकी नहीं है ,
वह अब भी ,
पहाड़ की मानिंद ,
सीधी खड़ी है ,
हाँ , चहरे पर झुर्रियां हैं ,
चहरे की झुर्रियों में ,
अनवरत संघर्षों का ,
इतिहास लिखा है ,
कोई पढ़ सके , तो पढ़े ,
काँपते हाथों की उंगलियां ,
ना जाने कितने संगमरमर ,
तराशे होंगे ,
कोई जान सके तो जाने ,
गड्ढे में दबी - धंसी इन आँखों ने ,
कितने वसंत और पतझड़
देखे होंगे ,
कोई ढूंढ सके , तो ढूंढे ,
और , इन काँपते पैरों ने ,
कितना लम्बा सफर ,
तय किया होगा ,
हिसाब लगा सको तो लगाओ ,
इनके सफेद रेशम सी बालों ने ,
कितने चाँद - सितारे सजाये होंगे ,
गिन सको तो , गिनो ,
फिर देखना तुम ,
तुम्हारी आँखें ,
जरूर नम जायेंगी ,
वह  ' माँ ' है , माँ ,
तुम्हारी भी , मेरी भी ,
सब की ही ,
उसे रोटी की चाहत नहीं है ,
चाहत है तुम्हारे दो मीठे बोल  की ,
उसे बैसाखी के सहारे की नहीं ,
तुम्हारे मजबूत ,
कन्धों के सहारे की जरूरत है ,
दे सको ,  तो , दे कर देखो ,
देखना ,
स्वर्ग  यहीं उतर आयेगा ,
इसी धरा पर ,
तुम्हारे घर ,
तुम्हारे आँगन ,
तुम्हारे चाक - चौबारे ,
और ,
सब जगह , हर ओर , हर छोर ......... 

-- विजय सिन्हा " तरुण "   

प्रकाशित - हलन्त , अंक अप्रैल 2023 



Saturday, February 18, 2023

रे वसंत ! तुम ऐसे आना आना

रे वसंत ! तुम ऐसे आना आना ,
हर घर - आँगन फूल खिलें ,
आम्र - कुञ्ज कोयलिया कुहके ,
वन -उपवन  भी खूब खिलें । 

शीतल शीतल मंद  बयार  बहे नित ,
खग - खञ्जन उन्मुक्त उड़ें ,
पपिहा टेर लगाए , वन - वन ,
टेसू - बुराँस हर ओर खिलें। 

सुरभित हो गमके दिग - दिगंत ,
चहके - बहके मरुत चले ,
भ्रमर करे गुँजन कलियों पर ,
हर दिल में नव प्यार पलें।

शुष्क ह्रदय के आँगन में भी ,
मानवता के फूल खिलें  ,
भूल गये जो  मानवता को ,
उनके दिल नवजोत जले। 

छोटा सा है जीवन अपना ,
फिर पतझर आ जाना है ,
कटुता छोड़ें , नफ़रत भूलें ,
आओ हम सब गले मिलें।