जब भी वह मुझ से मिलती है ,
वह बड़े प्यार से मिलती है ,
उसकी वाणी तो सच मुझको ,
मीठी मिश्री सी लगती है।
वह वृद्धा मुझको तो , मेरी ,
हाँ ,माँ जैसी ही लगती है।
आँखों में प्यार का भाव भरा ,
चेहरे पर झुर्री सजी हुई ,
रख दे गर सिर पर हाथ जो वो ,
आशीष की बारिस करती है।
वह वृद्धा मुझको तो मेरी ,
हाँ , माँ जैसी ही लगती है।
मैं जब भी नत हो जाता हूँ ,
पावन चरणों को छूने को ,
वो , बाँहें पकड़ उठाती है ,
वह अपने गले लगाती है।
वह वृद्ध मुझको तो , सच ही ,
हाँ , माँ जैसी ही लगती है।
मैं धन्य - धन्य हो जाता हूँ ,
उस क्षण सुख स्वर्ग का पाता हूँ ,
आँखों से झड़ते हैंआँसू ,
बेटा कह मुझे बुलाती है।
वह वृद्धा मुझ को तो सच ही ,
हाँ , माँ जैसी ही लगती है।
हो सिर पर जिसके हाथ सदा ,
माँ के स्नेहिल करकमलों का ,
दुःख - दर्दों की ही कौन कहे ,
मौत लौट कर जाती है।
वह वृद्धा मुझको तो , सच ही ,
हाँ , माँ जैसी ही लगती है।
रचना तिथि -- 13 09 -2020