मचल रही जवानियां , गा रही रवानियां ,
आज इस भूगोल को , फेंक दो , उछाल दो ,
मित्र हो तो प्यार दो , शत्रु का संहार हो ,
है जमीं का हौसला , हर कली अंगार हो ।
( अगस्त 1967 में रचित )
आज इस भूगोल को , फेंक दो , उछाल दो ,
मित्र हो तो प्यार दो , शत्रु का संहार हो ,
है जमीं का हौसला , हर कली अंगार हो ।
( अगस्त 1967 में रचित )
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