Monday, December 16, 2013

ओ पहरुए देश के


ओ पहरुए देश के तू जाग ,
तुझको दूर जाना है ,
 छोड़ दे आलस्य ,गर ,
मंजिल को पाना है।

उठाओ जाम अपने जोश का ,
हुँकार भरना है ,
वतन के दुश्मनों का तुम्हें  ,
संहार करना है ।

लगे न जंग हाथों को ,
उठा तलवार , चलना है ,
हम मरेंगे या जियेंगे ,
सोच कर विचलित न होना है।

छिपे गद्दार जो घर में ,
कलम सिर उनका करना है ,
वतन के दुश्मनों से
सदा हुशियार रहना है।

छिड़ा संग्राम सरहद पर ,
वतन के पाशवां जागो ,
उठी है आँख दुश्मन की ,
वतन के नौजवाँ जागो ,
जागो किसानों और
जन -जन देश के जागो  .............. 

ओ पहरुए देश के ............

No comments:

Post a Comment