ओ पहरुए देश के तू जाग ,
तुझको दूर जाना है ,
छोड़ दे आलस्य ,गर ,
मंजिल को पाना है।
उठाओ जाम अपने जोश का ,
हुँकार भरना है ,
वतन के दुश्मनों का तुम्हें ,
संहार करना है ।
लगे न जंग हाथों को ,
उठा तलवार , चलना है ,
हम मरेंगे या जियेंगे ,
सोच कर विचलित न होना है।
छिपे गद्दार जो घर में ,
कलम सिर उनका करना है ,
वतन के दुश्मनों से
सदा हुशियार रहना है।
छिड़ा संग्राम सरहद पर ,
वतन के पाशवां जागो ,
उठी है आँख दुश्मन की ,
वतन के नौजवाँ जागो ,
जागो किसानों और
जन -जन देश के जागो ..............
ओ पहरुए देश के ............
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